रामधारी सिंह दिनकर, भारतीय साहित्य के गौरव और हिंदी भाषा के प्रख्यात कवि थे। उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ के नाम से भी जाना जाता है। उनकी कविताएं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की भावना को प्रबल रूप से दर्शाती हैं।
उनका साहित्यिक योगदान न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करता है, बल्कि नई पीढ़ियों को भी प्रेरित करता है। आइए, ramdhari singh dinkar ka jivan parichay के बारे में विस्तार से जानते हैं।
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ramdhari singh dinkar ka jivan parichay short mein
यहाँ रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय संक्षेप में दिया गया है:
विषय | जानकारी |
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नाम | रामधारी सिंह दिनकर |
जन्म तिथि | 23 सितंबर 1908 |
जन्म स्थान | सिमरिया, बेगूसराय, बिहार |
माता का नाम | मनरूप देवी |
पिता का नाम | रवि सिंह |
शिक्षा | पटना विश्वविद्यालय से स्नातक (इतिहास) |
साहित्यिक शुरुआत | काव्य संग्रह ‘रेणुका’ (1935) |
प्रमुख रचनाएँ | रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा |
भाषा | हिंदी |
विधा | कविता, निबंध, महाकाव्य |
सम्मान | पद्म भूषण (1959) |
विचारधारा | राष्ट्रवाद, सामाजिक न्याय, वीर रस |
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान | कविताओं के माध्यम से जनजागरण |
निधन | 24 अप्रैल 1974 |
विरासत | राष्ट्रकवि के रूप में स्मरण, रचनाएँ आज भी प्रासंगिक |
रामधारी सिंह दिनकर का प्रारंभिक जीवन (ramdhari singh dinkar ka janm kab hua tha)
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। उनका परिवार एक सामान्य कृषक परिवार था, जो सीमित संसाधनों में जीवन यापन कर रहा था। दिनकर जी का बचपन संघर्षों से भरा था, क्योंकि जब वे मात्र 5 वर्ष के थे, तब उनके पिता रवि सिंह का निधन हो गया।
इस घटना ने उनके परिवार को गहरे आर्थिक संकट में डाल दिया, लेकिन उनकी माता मनरूप देवी ने हर कठिनाई का सामना करते हुए उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।
शिक्षा
शिक्षा के प्रति बचपन से ही उनकी रुचि थी। शुरुआती पढ़ाई उन्होंने गाँव के ही एक विद्यालय से की। पढ़ाई के दौरान उन्हें संस्कृत, हिंदी और बंगला साहित्य में विशेष रुचि थी।
आगे की शिक्षा के लिए उन्होंने मोकामा घाट हाई स्कूल में दाखिला लिया। यहाँ रहते हुए उन्होंने भारतीय इतिहास और साहित्य में गहरी रुचि विकसित की। उनकी अध्ययनशील प्रवृत्ति और साहित्य के प्रति लगाव ने उन्हें एक उत्कृष्ट विद्यार्थी बना दिया।
इसके बाद, उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इस दौरान वे कई साहित्यकारों से प्रभावित हुए और राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़ गए। पढ़ाई के साथ-साथ वे कविता और लेखन में भी रुचि लेने लगे। उनकी प्रारंभिक कविताओं में स्वतंत्रता संग्राम की झलक देखने को मिलती है। अब जानते हैं कि उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा कैसे शुरू की।
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साहित्यिक यात्रा की शुरुआत (Literary Journey)
पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत की। उनका झुकाव साहित्य और लेखन की ओर पहले से ही था, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं ने उनके लेखन को और अधिक प्रखर बना दिया।
दिनकर जी की प्रारंभिक रचनाएँ सामाजिक मुद्दों और देशभक्ति से प्रेरित थीं। उन्होंने भारतीय जनता के दुख, संघर्ष और अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों को अपनी कविताओं में व्यक्त किया। उनके शब्दों में क्रांति की गूंज थी, जो लोगों के दिलों को झकझोर देती थी।
उनकी पहली महत्वपूर्ण कृति ‘रेणुका’ थी, जो 1935 में प्रकाशित हुई। इस काव्य संग्रह में उन्होंने देशभक्ति, सामाजिक न्याय और मानवीय मूल्यों को उजागर किया। इसके बाद ‘हुंकार’, ‘रसवंती’ और ‘कुरुक्षेत्र’ जैसी रचनाएँ आईं, जो साहित्यिक जगत में उनकी पहचान बन गईं।
रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख रचनाएं (ramdhari singh dinkar ki rachna hai)
रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक विषयों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। उनकी कविताएँ जहाँ ओज और वीर रस से भरी होती थीं, वहीं उन्होंने श्रृंगार और करुण रस को भी अपनी लेखनी से संवारा। आइए उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं पर विस्तार से जानते हैं:
1. रश्मिरथी (1952)
‘रश्मिरथी’ दिनकर जी की सबसे प्रसिद्ध रचना है, जो महाभारत के कर्ण के जीवन पर आधारित है। इस खंडकाव्य में कर्ण के संघर्ष, दानवीरता और समाज के प्रति उनकी निष्ठा को बड़े ही मार्मिक और प्रेरणादायक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। दिनकर ने कर्ण को एक नायक के रूप में चित्रित किया, जो अपने कर्म और कर्तव्य के प्रति सदा समर्पित रहा।
2. कुरुक्षेत्र (1946)
‘कुरुक्षेत्र’ द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका और मानवता पर उसके प्रभाव को दर्शाने वाली रचना है। इसमें उन्होंने युद्ध की विनाशकारी प्रवृत्ति और शांति की आवश्यकता को रेखांकित किया है। यह महाभारत के युद्ध पर आधारित है, लेकिन इसका संदेश सार्वभौमिक है।
3. हुंकार (1938)
‘हुंकार’ दिनकर जी की ओजपूर्ण रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गूंज को अभिव्यक्त किया है। यह कविता भारतीय युवाओं को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने वाली अमर कृति है।
4. रेणुका (1935)
‘रेणुका’ उनकी पहली कविता संग्रह थी, जिसमें उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक विषयों को सरल और प्रभावी भाषा में प्रस्तुत किया। इस कृति में उनकी प्रारंभिक काव्यशैली की झलक मिलती है।
5. उर्वशी (1961)
‘उर्वशी’ प्रेम और वासना के बीच के संघर्ष को दर्शाने वाली काव्य रचना है। इसमें पौराणिक पात्र उर्वशी और पुरुरवा की प्रेम कहानी के माध्यम से मानवीय भावनाओं और इच्छाओं को दर्शाया गया है। इसके लिए उन्हें 1972 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कविता (ramdhari singh dinkar ki kavita)
रामधारी सिंह दिनकर की “रश्मिरथी” और “हुंकार” उनकी सबसे प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं। आइए, इनकी कुछ प्रसिद्ध पंक्तियाँ पढ़ते हैं:
1. रश्मिरथी (Rashmirathi)
“रश्मिरथी” महाभारत के कर्ण के जीवन पर आधारित है। इसमें कर्ण के संघर्ष, त्याग और वीरता को दर्शाया गया है। इसकी कुछ प्रसिद्ध पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:
“वह सत्य सत्य है, जो कभी न झुके,
जो न डरे अन्याय से, विपत्ति में भी सहे।
जो सत्य के लिए जग में हो खड़ा,
सारा विश्व भी करे जिसका विरोध, वह अड़ा।”

2. हुंकार (Hunkar)
“हुंकार” में दिनकर ने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध जनमानस को जाग्रत करने का आह्वान किया है। उनकी ओजस्वी वाणी में स्वतंत्रता की भावना मुखर होती है:
“सिंहासन खाली करो कि जनता आती है,
जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें,
जिनके पास न निजता है, न मूरतें,
जिनके गले में है अवलम्बन की बेड़ियाँ,
गिनती नहीं, मगर यहाँ लाखों हैं औ’ करोड़ियाँ।”
ये पंक्तियाँ दिनकर की लेखनी की ताकत को दर्शाती हैं। यदि आप इन कविताओं का विस्तार से अध्ययन करना चाहते हैं, तो पूरी रचना भी उपलब्ध कराई जा सकती है।
दिनकर जी की कविताएँ केवल साहित्यिक मंच तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों और आम जनता को भी प्रेरित किया। उनकी ओजस्वी वाणी ने युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान (Contribution to Freedom Struggle)
रामधारी सिंह दिनकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपनी कविताओं और रचनाओं के माध्यम से एक सशक्त आवाज बने। उन्होंने अपने ओजस्वी और प्रेरणादायक शब्दों के द्वारा लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत की।
1. देशभक्ति और ओजस्वी काव्य
दिनकर जी की रचनाएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी नेताओं और युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत थीं। उनकी कविताएँ अंग्रेजी शासन के अन्याय और अत्याचारों के खिलाफ जनमानस में आक्रोश और विद्रोह की भावना भरती थीं। उनकी कविता “हुंकार” में देशप्रेम और स्वाभिमान की गूंज सुनाई देती है।
2. अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आवाज
उनकी कविताएँ अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के विरोध में एक साहित्यिक हथियार थीं। “कुरुक्षेत्र” जैसे महाकाव्य में उन्होंने युद्ध और शांति के महत्व पर विचार किया, जबकि “रेणुका” में भारत की सांस्कृतिक विरासत को उजागर किया।
3. युवाओं को प्रेरित करना
दिनकर जी की रचनाएँ युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित करती थीं। उनके ओजस्वी शब्द लोगों के भीतर स्वाधीनता के प्रति समर्पण की भावना जगाते थे। उनकी कविताएँ केवल शब्द नहीं, बल्कि क्रांति की पुकार थीं।
4. समाज सुधार की प्रेरणा
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता की बात की, बल्कि सामाजिक बुराइयों को भी अपने लेखन के माध्यम से उजागर किया। उनकी रचनाएँ सामाजिक समानता, न्याय और मानवाधिकारों की मांग करती थीं।
रामधारी सिंह दिनकर का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान केवल उनकी कविताओं तक सीमित नहीं था; उन्होंने अपने विचारों और लेखनी के माध्यम से पूरे राष्ट्र को जागरूक किया। अब जानते हैं कि उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें किन-किन पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया।
रामधारी सिंह दिनकर को मिले पुरस्कार और सम्मान (Awards and Recognition)
रामधारी सिंह दिनकर को उनके उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान और राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। उनकी रचनाएँ न केवल हिंदी साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती हैं, बल्कि उनकी लेखनी ने भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना को भी समृद्ध किया।
1. पद्म भूषण (1959)
भारत सरकार ने दिनकर जी को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए 1959 में पद्म भूषण से सम्मानित किया। यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है।
2. ज्ञानपीठ पुरस्कार (1972)
उनकी महान रचना ‘उर्वशी’ के लिए उन्हें 1972 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह हिंदी साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है।
3. राज्यसभा सदस्य
उन्हें साहित्य और समाज के प्रति उनके योगदान के लिए राज्यसभा का सदस्य भी नियुक्त किया गया, जहाँ उन्होंने समाजिक मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय रखी।
4. अन्य सम्मान
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान हेतु विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान
इन सभी सम्मानों ने रामधारी सिंह दिनकर को एक अमर साहित्यकार के रूप में स्थापित किया।
लेखन शैली और विचारधारा (Writing Style and Ideology)
रामधारी सिंह दिनकर की लेखनी ओजपूर्ण और प्रभावशाली थी। उन्होंने वीर रस और राष्ट्रभक्ति को अपनी कविताओं में प्रमुखता से स्थान दिया। उनकी रचनाएँ समाज में व्याप्त अन्याय, शोषण और जातिवाद के विरुद्ध क्रांति का आह्वान करती हैं।
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रामधारी सिंह दिनकर के कुछ प्रेरणादायक उद्धरण (Motivational Quotes) यहां दिए जा रहे हैं, जो आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं:
प्रेरणादायक उद्धरण (motivation ramdhari singh dinkar quotes)
- “मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।”
(यह पंक्ति मानव की अदम्य इच्छा शक्ति और परिश्रम की महिमा को दर्शाती है।) - “समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।”
(यह उद्धरण बताता है कि अन्याय को देखकर चुप रहना भी उतना ही बड़ा अपराध है।) - “यदि देशहित मरना पड़े, मुझे सहस्रों बार मरना है।”
(यह पंक्ति देशभक्ति की भावना को दर्शाती है, जो हर नागरिक को प्रेरित करती है।) - “जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।”
(यह पंक्ति दर्शाती है कि विपरीत परिस्थितियों में व्यक्ति का विवेक ही सबसे पहले नष्ट होता है।) - “जो तीर चले, वे फूल बने,
जो फूल झरे, अंगारे हैं।”
(यह उद्धरण साहस और दृढ़ संकल्प को प्रकट करता है।) - “कायरों को नहीं मिलता कुछ भी,
वीरों को मिलता है संसार।”
(यह पंक्ति साहसी लोगों को प्रोत्साहित करती है कि वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निडर बने रहें।)

रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियाँ हर किसी के दिल में जोश भर देती हैं और कठिनाइयों से लड़ने की प्रेरणा देती हैं।
निधन और विरासत (Death and Legacy)
रामधारी सिंह दिनकर का निधन 24 अप्रैल 1974 को हुआ। उन्होंने दिल्ली में अपनी अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु ने भारतीय साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति पहुंचाई, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी जीवित हैं और पाठकों को प्रेरित करती हैं।
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साहित्यिक विरासत
- अमर कृतियाँ: दिनकर जी की रचनाएँ जैसे ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ और ‘हुंकार’ आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं।
- शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रम: उनकी रचनाएँ भारतीय विद्यालयों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल हैं, ताकि युवा पीढ़ी उनके विचारों और काव्यशक्ति से प्रेरणा ले सके।
- सामाजिक जागरूकता: दिनकर जी की कविताएँ सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
स्मृति में सम्मान
डाक टिकट और प्रतिमाएँ: भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किए और कई स्थानों पर उनकी प्रतिमाएँ स्थापित की गई हैं।
दिनकर पुरस्कार: उनकी स्मृति में विभिन्न साहित्यिक संस्थानों द्वारा ‘दिनकर पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है।
स्मारक और संग्रहालय: बिहार के बेगूसराय में स्थित उनका जन्मस्थान एक संग्रहालय के रूप में संरक्षित है।
ramdhari singh dinkar ka jivan parichay hindi mein FAQs:
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
रामधारी सिंह दिनकर को राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता है?
उनकी कविताओं में देशभक्ति और सामाजिक चेतना की भावना थी, इसलिए उन्हें राष्ट्रकवि कहा जाता है।
दिनकर जी की सबसे प्रसिद्ध रचना कौन सी है?
‘रश्मिरथी’ उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना मानी जाती है।
रामधारी सिंह दिनकर को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
उन्हें पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार और भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
रामधारी सिंह दिनकर की लेखन शैली कैसी थी?
उनकी लेखन शैली ओजपूर्ण, राष्ट्रभक्ति से प्रेरित और समाज सुधारक थी।
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कहां हुआ था?
उनका जन्म बिहार के सिमरिया गांव में हुआ था।
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कब हुआ था?
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था।
कबीर रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय?
कबीर और रामधारी सिंह दिनकर दोनों ही भारतीय साहित्य के महान कवि थे, लेकिन दोनों का समय और लेखन शैली अलग थी। कबीर भक्ति काल के निर्गुण संत कवि थे, जबकि दिनकर आधुनिक हिंदी साहित्य के राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि थे।
रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख रचना कौन सी थी?
उनकी प्रमुख रचनाएँ ‘रश्मिरथी’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हुंकार’ और ‘रेणुका’ हैं। इनमें ‘रश्मिरथी’ उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना मानी जाती है।
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय कैसे लिखें?
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय लिखने के लिए आप निम्नलिखित बिंदुओं का उपयोग कर सकते हैं: जन्म तिथि और स्थान
पारिवारिक पृष्ठभूमि
शिक्षा
साहित्यिक योगदान
प्रमुख रचनाएँ
विचारधारा
सम्मान और पुरस्कार
निधन और विरासत
रामधारी सिंह दिनकर किस वाद के प्रमुख कवि हैं?
रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रवाद और वीर रस के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनकी कविताएँ स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक न्याय और राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत थीं।
रामधारी सिंह दिनकर ने मिडिल कहाँ से पास किया था?
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से प्राप्त की और मोकामा घाट हाई स्कूल से मिडिल परीक्षा पास की थी।
रामधारी सिंह दिनकर की भाषा कौन सी है?
उनकी रचनाएँ हिंदी भाषा में थीं, लेकिन वे संस्कृत, बंगाली और उर्दू भाषा में भी पारंगत थे।
रामधारी सिंह दिनकर के कितने बच्चे थे?
उनके पुत्र का नाम नीरज दिनकर था।
दिनकर की पहली रचना कौन सी थी?
दिनकर की पहली प्रसिद्ध काव्य रचना ‘रेणुका’ (1935) थी।
बिहार के राष्ट्रीय कवि कौन हैं?
रामधारी सिंह दिनकर को बिहार का ‘राष्ट्रीय कवि’ कहा जाता है। उनकी रचनाएँ स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रवाद से जुड़ी हुई हैं, जिसके कारण उन्हें यह उपाधि दी गई।
रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु कब हुई थी?
रामधारी सिंह दिनकर का निधन 24 अप्रैल 1974 को हुआ था।
निष्कर्ष (Conclusion)
ramdhari singh dinkar ka jivan parichay हमें उनकी संघर्षशीलता, देशभक्ति और साहित्यिक प्रतिभा की प्रेरणादायक कहानी बताता है। उन्होंने अपने शब्दों के माध्यम से समाज में जागरूकता और क्रांति की भावना जगाई। उनकी रचनाएँ आज भी हमें साहस, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। दिनकर जी का साहित्य भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है, जो सदैव प्रासंगिक रहेगा।